
पिछले चौबीस घंटों की बारिश ने मुजफ्फरपुर स्मार्ट सिटी की पोल खोल दी है. नगर निगम प्रशासन को लगभग नंगा कर दिया है. शहर के पुराने मकानों में कोई भी ऐसा नहीं बचा जिसमें दो से तीन फुट तक पानी नहीं लगा हो. शहर के सभी प्रमुख मार्गों पर भी सिर्फ पानी ही पानी नज़र आ रहे.
बाइक और कारों का परिचालन इसलिए बंद है क्योंकि उनके साइलेंसर लेबल से ऊपर तक पानी है. अपनी ज़रूरत की वस्तुओं को खरीदने के लिए लोग सड़क पर इसलिए नहीं निकल रहे क्योंकि उन्हें डर है कि रोड पर बने गड्ढे में कहीं उनका पैर न टूट जाए.
एक तरफ बारिश न होने से आम जनता इसलिए चिंतित थी कि पानी का स्तर इतना नीचे चला गया था कि पीने का पानी भी मिलना कठिन हो रहा था. दूसरी तरफ नगर निगम प्रशासन मन से इसलिए ख़ुश था कि उसकी दुर्व्यवस्था की पोल खुलने से बची हुई थी.
पिछले चौबीस घंटे की हथिया नक्षत्र की भीषण बारिश ने शहरवासियों के जनजीवन को अस्त व्यस्त कर दिया है। लोग अपने घरों में ही कैद रहने को विवश हैं।
सवाल ये भी है कि स्मार्ट सिटी के तमगा मिलने से नगरवासियों को लाभ क्या मिला?
उन सोलह सौ करोड़ रुपए का क्या हुआ जो मुजफ्फरपुर शहर को स्मार्ट सिटी बनाने के लिए खर्च कर दिए गए?
स्थानीय विधायक, मेयर, और नगर निगम प्रशासन इन तीनों को इसका ज़बाब देना चाहिए.
अभी बारिश रुकने का नाम नहीं ले रही,यदि यही स्थिति बनी रही तो शहर की स्थिति और भयावह हो जायेगी.
पर इसके लिए जिम्मेवार सिर्फ नगर निगम प्रशासन, मेयर और विधायक ही नहीं हैं बल्कि नगर निगम क्षेत्र के सभी 49 वार्ड पार्षद भी हैं, जिन्हें स्मार्ट सिटी के नाम पर मिले सोलह सौ करोड़ रुपए में से सांत्वना समान रकम मिली होगी।
सवाल ये भी है कि जनप्रतिनिधि बलजोरी तो पद पर नहीं बैठ जाते? आख़िर जब जनता ख़ुद ऐसे बेईमान, भ्रष्टाचारी और निकम्मे प्रतिनिधि को जाति और धर्म देखकर चुनेगी,तो इनसे अपेक्षा रखना ही बेइमानी है।
City News Desk - Gobarsahi Times : GTNews18