Today's Editorial October 13 : जनादेश 2025: बिहार के अगले पाँच साल, आपका एक वोट

बिहार विधानसभा चुनाव 2025 दो चरणों—6 और 11 नवंबर—में होंगे; मतगणना 14 नवंबर को। करीब 7.4 करोड़ मतदाता—जिनमें परंपरागत रूप से महिलाएँ अधिक हिस्सेदारी दिखाती रही हैं—इस बार सिर्फ़ सरकार नहीं, बल्कि विकास की प्राथमिकताएँ भी तय करेंगे।
पुराना बिहार बनाम नया बिहार: बदलती तस्वीर, बदलती प्राथमिकताएँ
तीन दशक पहले के “पुराने बिहार” की छवि—कमज़ोर बुनियादी ढाँचा, सीमित औद्योगिक निवेश, पलायन, और सामाजिक सूचकांकों की चुनौतियाँ—आज “नए बिहार” में कई मोर्चों पर बदली है। ग्रामीण सड़कों का विस्तार तेज़ हुआ; प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना और राज्य योजनाओं के संयोजन से पिछले वर्षों में बड़े पैमाने पर लिंक रोड और पुल बने—केवल हाल के एक वित्तीय वर्ष में ही 4,800 किमी से अधिक ग्रामीण सड़कों/852 पुलों का निर्माण दर्ज है, जबकि पिछले 10 वर्षों में ~55,000 किमी ग्रामीण सड़कों का दावा सरकारी मंचों/नेताओं द्वारा किया गया। यह दीर्घकालिक ट्रेंड एक सुसंगत निवेश के संकेत देता है और बाजार, स्कूल, स्वास्थ्य केंद्र, और रोज़गार तक पहुँचना आसान करता है।
अर्थव्यवस्था में भी दिशात्मक बदलाव दिखे हैं। 2023-24 में बिहार की अर्थव्यवस्था (GSDP) की वृद्धि दर 9% के आसपास आँकी गई; प्रति व्यक्ति GSDP ~₹66,800 (करेंट प्राइस) के अनुमान तक पहुँची—यानी आधार छोटा होने के बावजूद हालिया वर्षों में पकड़ मज़बूत हुई है। राज्य के आर्थिक सर्वेक्षण/स्वतंत्र विश्लेषण बताते हैं कि सेवाओं के साथ-साथ उद्योग का योगदान बढ़ रहा है और कुछ आकलनों में औद्योगिक गतिविधि का बढ़त लेना एक संरचनात्मक बदलाव की ओर इशारा करता है। बेशक, यह उछाल राज्य की दीर्घकालिक औद्योगिक क्षमता और रोज़गार सृजन में कैसे अनुवाद होता है—यह अगले कार्यकाल की नीति-गुणवत्ता पर निर्भर करेगा।
गरीबी और मानव विकास में “नई रफ़्तार” सबसे महत्त्वपूर्ण है। राष्ट्रीय बहुआयामी गरीबी सूचकांक (MPI) के मुताबिक बिहार में 2015-16 से 2019-21 के बीच MPI-गरीबों का अनुपात ~52% से घटकर ~34% तक आया—देश में सबसे तेज़ गिरावटों में शामिल। इसका अर्थ है कि स्वास्थ्य-शिक्षा-जीवनस्तर के 12 संकेतकों पर समेकित प्रगति हुई है; हालाँकि यह स्तर अभी भी ऊँचा है और निरंतर नीति-पुश की माँग करता है।
शिक्षा वो क्षेत्र है जहाँ “पुराना बनाम नया” का फर्क सबसे अधिक दिखाई देता भी है और चुनौती भी। PLFS-आधारित नवीनतम साक्ष्य बताते हैं कि साक्षरता में बिहार अभी भी देश में सबसे नीचे है—यानी स्कूलिंग के वर्षों और सीखने के नतीजों (learning outcomes) के बीच की दूरी कम करनी होगी। सकारात्मक पक्ष यह कि हालिया ASER 2024 में कक्षा-3 के पढ़ने के कौशल में बिहार में ~8 प्रतिशत अंक की छलाँग दर्ज हुई—यह संकेत है कि सही हस्तक्षेप से बुनियादी साक्षरता में तेज़ सुधार संभव है। चुनावी विमर्श में यह सवाल केंद्र में होना चाहिए कि अगली सरकार माध्यमिक-उच्चतर माध्यमिक चरण में गिरती एनरोलमेंट/ट्रांज़िशन और कौशल-संगति (skills alignment) कैसे सुधारेगी।
पलायन पुरानी कहानी है, लेकिन नए संदर्भ में और तीखी—रोज़गार की खोज में बिहार की जनसंख्या का 7% से अधिक बाहर काम/रोज़गार के लिए जाता है, और 2001-11 के बीच 20-29 आयुवर्ग का नेट आउट-माइग्रेशन दोगुने से अधिक हो गया था। यह आँकड़े याद दिलाते हैं कि उद्योग, एग्री-वैल्यू-चेन, और शहरी-सेवाओं में स्थानीय अवसर बढ़ाना क्यों निर्णायक है।
मतदाता और चुनाव की बारीकियाँ: डेटा हमें क्या बताते हैं
इस बार चुनाव दो चरणों (6 व 11 नवंबर) में हैं; मतगणना 14 नवंबर को होगी। लगभग 7.4 करोड़ पंजीकृत मतदाता, 243 सीटें, और बहुमत का आँकड़ा 122—ये बुनियादी तथ्य हैं। 2020 में कुल मतदान ~57% रहा; उल्लेखनीय यह कि महिलाओं का मतदान-प्रतिशत पुरुषों से ज़्यादा था—यह ट्रेंड बिहार की लोकतांत्रिक सक्रियता का सकारात्मक संकेत है और 2025 में टर्नआउट बढ़ाने का सीधा अवसर भी। प्रशासन ने इस बार Voter Information Slip (VIS) और बूथ-स्तरीय व्यवस्थाओं पर ज़ोर दिया है ताकि मतदाता बेझिझक केंद्र तक पहुँचें।
“बेहतर चुनाव” का अर्थ: मुद्दों पर स्पष्ट जनादेश
1) रोज़गार और स्थानीय अर्थव्यवस्था:
नए बिहार की अर्थव्यवस्था तेज़ी पकड़ रही है, पर प्रति व्यक्ति आय अब भी राष्ट्रीय औसत से काफ़ी नीचे है। नीति-केंद्रित सवाल यह होना चाहिए कि—MSME क्लस्टर्स, फूड-प्रोसेसिंग, टेक्सटाइल/लेदर, नवीकरणीय ऊर्जा, और कंस्ट्रक्शन-लिंक्ड वैल्यू-चेन्स में जॉब-डेन्स निवेश कैसे आएँगे? क्या जिला-स्तरीय “रोज़गार-बेसलाइन” तय कर हर साल लक्ष्यबद्ध ट्रैकिंग होगी? यह चर्चा केवल घोषणापत्रों में नहीं, बजट-आपराधिकरण (budget execution) और समयबद्ध परियोजनाओं की सार्वजनिक मॉनिटरिंग में दिखनी चाहिए। (संदर्भ के लिए 2023-24 के GSDP/PCI अनुमानों को ऊपर देखें।)
2) शिक्षा और स्वास्थ्य—मानव पूँजी:
ASER और NFHS-5 संकेत देते हैं कि बुनियादी पढ़ाई-गिनती, पोषण, मातृ-शिशु स्वास्थ्य जैसे सूचकांक सुधार रहे हैं, पर गुणवत्ता और स्थायित्व अभी भी दूरी पर हैं। सरप्लस-ट्रेंड (जैसे कक्षा 3 की पढ़ाई) को माध्यमिक-पारगमन, डिजिटल कौशल, और व्यावसायिक शिक्षा से जोड़ना होगा—वरना हाई-स्कूल/इंटर के बाद “रोज़गार-योग्यता” का गैप वही बना रहेगा। जिला-वार सीखने के नतीजों के आधार पर फंड-लिंक्ड प्रोत्साहन, और स्कूल-टू-वर्क पाइपलाइन (इंटर्नशिप/अप्रेंटिसशिप) को नीति-स्तर पर सुदृढ़ करना अगली सरकार की कसौटी होगा।
3) बुनियादी ढाँचा और कनेक्टिविटी:
ग्रामीण सड़कों/पुलों का विस्तार, Ganga-riverfront/एक्सप्रेस सेगमेंट्स, और हाइब्रिड-एन्युटी जैसे वित्तीय मॉडल बतौर उपकरण सामने आए हैं। मतदाता को पूछना चाहिए: “मेरे विधानसभा क्षेत्र में अगले पाँच वर्षों में कितने किमी सड़क/कितने पुल/कौन-से शहरी सुधार समयबद्ध पूरे होंगे? उनकी ओपन डैशबोर्ड मॉनिटरिंग कहाँ होगी?” आज तक के निर्माण-आँकड़े आधार हैं, पर जनादेश “अगले चरण” के लिए होना चाहिए—यानी जिस जगह आप रहते हैं, वहाँ यथार्थवादी, मापनीय लक्ष्यों की माँग करें।
4) पलायन-रोकथाम और सामाजिक सुरक्षा:
आउट-माइग्रेशन घटाने का एकमात्र टिकाऊ उपाय स्थानीय अवसर है। जिला-स्तर पर—स्वास्थ्य, शिक्षा, स्किल, डिजिटल-पब्लिक-इन्फ़्रा, और महिला-उद्यमिता के लिए लक्षित प्रोग्रामिंग—MPI-घटाने की रफ़्तार को बनाए रख सकती है। यह चुनाव इस बात का है कि क्या मतदाता “लाभांश की निरंतरता” (continuity of gains) और “नई छलाँग” (new big bets) के बीच सही संतुलन चुनते हैं।
5) क़ानून-व्यवस्था और डिजिटल-सुरक्षा:
NCRB के हालिया रुझान साइबर अपराधों में बढ़ोतरी की ओर संकेत करते हैं—यह नई चुनौती है। अगले पाँच वर्षों में साइबर-सेल, डिजिटल-साक्षरता, और फ़्रॉड-प्रिवेंशन पर परिणाम-उन्मुख रोडमैप माँगना ज़रूरी है, ताकि डिजिटल-समावेशन सुरक्षित भी रहे। (The Times of India)
“डेटा-ड्रिवन” वोटिंग: मतदाता के लिए चेकलिस्ट
उम्मीदवार का रिपोर्ट-कार्ड देखें—शपथपत्र, विधायी उपस्थिति, क्षेत्रीय विकास का ट्रैक-रिकॉर्ड।
आपके क्षेत्र में 2019-24/20-25 के दौरान सड़कों, स्कूलों/अस्पतालों, पेयजल/नालों, स्ट्रीट-लाइट, और पुलिस-थाने/पीएस-हेल्पडेस्क जैसे संकेतकों पर मापनीय प्रगति क्या हुई?
युवाओं और महिलाओं के लिए ठोस प्रस्ताव—अप्रेंटिसशिप, काउंसलिंग/प्लेसमेंट-सेल, स्व-रोज़गार ऋण, और सेफ़-वर्कस्पेस—घोषणाओं में हैं या कार्यान्वयन-कैलेंडर के साथ हैं?
मतदान-लॉजिस्टिक्स पहले से जाँच लें—VIS/बूथ/भाग-संख्या/समय, ताकि घर-परिवार के साथ सुनिश्चित मतदान हो सके। 2020 में महिलाएँ पुरुषों से ज़्यादा वोट डाल चुकी हैं; इस बार युवा-पहली बार वोटर्स और शहरी मतदाताओं का टर्नआउट निर्णायक बने—यही “बेहतर चुनाव” की असली कसौटी है।
निष्कर्ष: “बेहतर भविष्य” की बुनियाद—भागीदारी और जवाबदेही
बिहार का “पुराना” और “नया”—दोनों सच हैं। सड़क-कनेक्टिविटी बढ़ी है, अर्थव्यवस्था ने रफ़्तार पकड़ी है, MPI में तेज़ गिरावट आई है; साथ ही साक्षरता/स्किल-गैप, पलायन, और डिजिटल-सुरक्षा जैसी चुनौतियाँ भी उतनी ही वास्तविक हैं। 6 और 11 नवंबर को आपका वोट यह तय करेगा कि 2025-30 के बीच स्थायी रोज़गार और मानव-पूँजी पर कितना निवेश होगा, बुनियादी ढाँचे की अगली छलाँग कितनी पारदर्शिता से पूरी होगी, और क्या प्रशासन हर वादे को ट्रैक करने योग्य लक्ष्यों में बदलेगा।
“बिहार के बेहतर भविष्य के लिए बेहतर चुनाव करें—अपने मत का सही प्रयोग करें।”